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अमरनाथ समुद्र तल से १५००० फीट की ऊंचाई पर दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले में स्थित है।
विश्व के सबसे ऊंचे रणक्षेत्र सियाचिन ग्लेशियर का मार्ग भी यहीं करीब से होकर जाता है। माना जाता है कि अमरनाथ की पवित्र गुफा की खोज बूटा मलिक नामक एक मुस्लिम गडरिए ने की थी। तभी से उसके परिवार के लोग यहां की पूजा-पाठ में अपना सहयोग प्रदान करते हैं। आज भी गुफा में स्थित मंदिर के चढ़ावे का एक भाग उसके परिवार को दिया जाता है, जो कि अपने आप में हिंदू-मुस्लिम भाईचारे का एक जीवंत उदाहरण है।
श्री अमरनाथ जी की यात्रा का मुख्य मार्ग जम्मू तवी से शुरू होता है। यात्रियों का काफिला पूर्ण सुरक्षा व्यवस्था के साथ पहलगांव के लिए रवाना होता है।
पहलगांव समुद्रतल से ७२०० फीट की ऊंचाई पर लिद्दर नदी के किनारे स्थित है। यहां से पवित्र गुफा ४८ किलोमीटर पर है।
चंदनवाड़ी पहलगांव से १६ किमी दूर है। इसकी ऊंचाई समुद्रतल से ८५०० फीट है। यह दूरी पैदल छह घंटे में तथा कार से एक घंटे में तय होती है। यात्रा में भंडारे का आयोजन यहीं से प्रारंभ होता है। यहां नीलगंगा नामक एक नदी बहती है, जिसके संबंध में प्रचलित है कि जब एक समय भगवान शिव का मुख पार्वतीजी की आंख के काजल से काला हो गया, तब शिवजी ने अपना मुख इस नदी में धोया, जिस कारण काजल की कालिमा नदी की संपूर्ण जलराशि में फैल गई। तभी से इसका नाम नील गंगा हो गया।
पिस्सुटॉप चंदनवाड़ी से तीन किमी दूर ११,५०० फीट की ऊंचाई पर स्थित है। इस दूरी को तय करने में दो-तीन घंटे का समय लगता है। प्राचीन काल में यहां देवताओं द्वारा राक्षसों की हडि्डयां पीसे जाने के कारण इस जगह का नाम पिस्सूघाटी पड़ा। यहीं से तीर्थ गुफा की जटिल चढ़ाई शुरू होती है, जो कि अतिदुर्गम, खड़ी, पथरीली तथा सर्पाकार है। यहां ऑक्सीजन की कमी महसूस होती है। शेषनाथ, पिस्सूटॉप से दस किमी दूर १२५०० फीट की ऊंचाई पर स्थित है। इस दूरी को तय करने में पांच से छह घंटे का समय लगता है। यहां एक भंयकर राक्षस निवास करता था, जिसका वध भगवान शेषनाग ने श्रीविष्णु के आग्रह पर किया था। इसलिए इस जगह का नाम शेषनाग हो गया। यह स्थान लिद्दर नदी का उद्गम स्थल है तथा मन को मोह लेने वाला है। यहां एक सुंदर झील है।
शेषनाग से महागुनस की दूरी तीन किमी है, जिसे तय करने में दो से तीन घंटे लगते हैं। यह स्थान समुद्रतल से १४८०० फीट की ऊंचाई पर है। महागुनस पर्वत की चढ़ाई खड़ी व सीधी है।
महागुनस से पोशपत्री की दूरी लगभग दो किमी है, जिसे तय करने में एक से दो घंटे लगते हैं। यह स्थान १४७०० फीट की ऊंचाई पर है।
पोशपत्री से पंचतरणी की दूरी आठ किमी है। यह स्थान ११५०० फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह स्थान पांच नदियों का संगम स्थल है। कहा जाता है कि एक बार तांडव नृत्य करते हुए भगवान शिव की जटाएं खुल गईं, जिसमें से पांच धाराएं गंगा की बह निकलीं। इस कारण इस जगह का नाम पंचतरणी हो गया। इन नदियों में स्नान से प्रयाग, नैमिशारण्य व कुरुक्षेत्र आदि के तीर्थ के समान फल मिलता है।
पवित्र गुफा पंचतरणी से छह किमी दूर स्थित है। समुद्रतल से इसकी ऊंचाई १३५०० फीट है। इस यात्रा का तीन किमी का मार्ग बर्फ से ढका है। इसके उपरांत हिम नदी को पार करके मुख्य गुफा के दर्शन होते हैं। यह दूरी करीब तीन से चार घंटे में पूरी होती है। पवित्र गुफा १५० फीट लंबी और १०० फीट चौड़ी है। गुफा के पास अमरावती नामक नदी बहती है। कहा जाता है कि एक बार देवताओं को अमरता का वरदान देने के लिए शिवजी ने अपने मस्तक के चंद्र को सूक्ष्म शक्ति द्वारा निचोड़ा, जिससे एक अमृतधारा बह निकली, जो गुफा के समीप बहने वाली अमरावती नदी के रूप में परिणत हो गई। चंद्र को निचोड़ते समय अमृत की कुछ बूंदें शिवजी के शरीर पर पड़ीं और वहीं जम गईं। यही जमी हुई बूंदें पवित्र गुफा में शिवलिंग के रूप में स्थित है।
गुफा में स्थित पार्वतीपीठ ५१ शक्तिपीठों में से एक है। कहा जाता है कि यहां भगवती सती का कंठ गिरा था। पास ही एक स्थान से पवित्र सफेद भस्म निकलती है, जो कि अमृतबिंदु की बहिन है। भक्तजन इसे अपने शरीर पर लगाकर भगवान भोलेनाथ के दर्शन करते हैं। पवित्र गुफा के ऊपर श्रीराम कुंड है, जिसका जल गुफा में बूंद-बूंद टपकता रहता है। भक्तजन इसे प्रसाद रूप में ग्रहण करते हैं।
गुफा में शिवलिंग पूजन से मोक्ष प्राप्ति होती है तथा विा, सौंदर्य, स्वास्थ्य व दीर्घ आयु प्राप्त होती है। लिंग पुजन मात्र से शिव व पार्वती दोनों का पूजन होता है। लिंग के मूल भाग में ब्रह्मा, मध्य में श्री विष्णु और ऊपरी भाग में महादेव का निवास होता है।
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