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Tuesday 17 May 2011

ये बालाजी का दरबार है

बाल बिखेरे महिलाएं सिर घुमा रही हैं! उनके शरीर पर भारी पत्थर भी रखे हैं! उनकी चीत्कार और बचाओ-बचाओ की गुहार भी सुनाई पड़ रही है! एक कोने में महिलाएं कंडे जलाकर धुएं की तरफ अपना सिर करके झूम रही हैं! गलियारे में मैले कुचैले कपड़े पहने महिलाएं और पुरुष बेड़ियों और सांकलों में बंधे हैं! तेज आवाज में बड़बड़ा भी रहे हैं मानो वे गुस्से में हवा से बातें कर रहें हों! चिथड़ों में लिपटे कुछ ऐसे लोग भी पड़े हैं जिनके तन पर पूरी चमड़ी भी नहीं है! ये प्रेतराज सरकार का दरबार है।

राजस्थान के दौसा और करौली जिलों को बांटने वाली मेहंदीपुर पहाड़ियों के बीच घाटी में बालाजी मंदिर में यह दरबार हर रोज दो बजे से चार बजे तक लगता है।



यह मंदिर हिंडौन से दिल्ली-जयपुर हाइवे को जोड़ने वाली सड़क पर दौसा और करौली जिलों की सीमा पर स्थित है। सड़क मार्ग से बालाजी जाने के लिए दिल्ली से दो रास्ते हैं। एक रास्ता मथुरा, भरतपुर होकर जाता है। दूसरा रास्ता अलवर से होते हुए बांदीकुई से है। रेल से जाने के भी दो रास्ते हैं। एक है दिल्ली-मुंबई रेलमार्ग से। इस रास्ते से जाने पर हिंडौन या महावीर जी स्टेशन पर उतरकर लगभग एक घंटे का सड़क मार्ग तय करके बालाजी पहुंचा जा सकता है। दूसरा तरीका है कि दिल्ली जयपुर अहमदाबाद रेल मार्ग से जाकर बांदी कुंई स्टेशन पर उतरना होगा। बालाजी पहुंचने के लिए आगे का रास्ता सड़क से होकर जाता है। ठहरने के लिए यहां तमाम धर्मशालाएं हैं। वैसे यहां सुबह-सुबह पहुंचना अच्छा रहता है।

इस दौरान कचहरी की तरह यहां अर्जी लगाने वाले भक्तों को कष्ट देने और बाधा देने वाले भूत-प्रेतों की पेशी ली जाती है और अपराध के मुताबिक उन्हें दंड भी दिया जाता है।

वैसे तो बालाजी का एक सुविख्यात मंदिर दक्षिण भारत में है लेकिन वहां बालाजी के दर्शन राम के बाल रूप में होते हैं। जबकि मेहंदीपुर में हनुमान जी के बाल रूप को श्रद्धालु बालाजी कहते हैं। बालाजी में मुख्य रूप से तीन दरबार हैं। मंदिर में प्रवेश करते ही पहला बालाजी (हनुमान जी) का दरबार है, फिर दाईं तरफ दूसरा कोतवाल कप्तान यानी भैरव जी का दरबार और फिर सीढ़ियों से ऊपर जाकर तीसरा प्रेतराज सरकार का दरबार है। मान्यता है कि अब से करीब १००० वर्ष पूर्व तीनों देव यहां प्रकट हुए थे। बालाजी, कोतवाल कप्तान और प्रेतराज सरकार की मूर्तियों को अलग से किसी मूर्तिकार ने गढ़कर नहीं बनाया है बल्कि वे पर्वत का एक हिस्सा हैं। समूचा पर्वत मानो उनका 'कनक भूधराकार' शरीर है। प्रकट होने से अब तक १२ महंत बालाजी की सेवा में रहे हैं। वर्तमान मंदिर महंत गणेशपुरी के सेवाकाल में बना था।

बालाजी महाराज की जय! कोतवाल कप्तान की जय! प्रेतराज सरकार की जय! इन जयकारों के साथ हर रोज सुबह साढ़े छह बजे मंदिर में बालाजी की आरती होती है। उस समय मंदिर परिसर ही नहीं बल्कि बाहर सड़क पर भी भारी भीड़ जमा होती है। बालाजी की आरती संपन्न होने पर सभी श्रद्धालुओं पर पुजारी महाराज छींटे देते हैं। फिर धीरे-धीरे भीड़ छंटती है और केवल दरख्वास्त लगाने वाले लोग ही पंक्ति में खड़े रहते हैं।

अर्जी दिन में केवल आठ बजे से ग्यारह बजे तक लगाई जाती है।
पंक्ति में जितने लोग उतनी ही शिकायतें और परेशानियां हैं। किसी का व्यापार इन दिनों मंदा पड़ा है तो किसी की नौकरी छूट गई है, किसी का काम बनते-बनते बिगड़ जाता है तो कोई तमाम मेहनत के बाद भी परीक्षा में सफल नहीं हो रहा है। कोई अपने परिवार में किसी खास के बिगड़े व्यवहार से परेशान है तो किसी को मानसिक परेशानी है या किसी का प्रिय असाध्य बीमारी से गुजर रहा है, किसी की शादी नहीं हो रही है तो कोई शादी के वर्षों बाद भी संतानहीन है। अपनी हर मुश्किल और बाधाओं को दूर करवाने के लिए लोग इस दरबार में हाजिर हैं और अपनी बारी की प्रतीक्षा में हैं।

दरख्वास्त सवा दो रुपये में लगती है और अर्जी सवा इक्यासी रुपये में। दरअसल यह दरबार में चढ़ाने का एक प्रसाद है। दरख्वास्त में एक दोने में कुछ लड्‌डू और बताशे होते हैं जबकि अर्जी में पके चावल और उड़द की दाल होती है, इसे एल्युमिनियम के बर्तन में चढ़ाया जाता है। अर्जी और दरख्वास्त बाजार की किसी भी दुकान से खरीदा जा सकता है। सभी दुकानों में इनकी कीमत समान है। दरख्वास्त छोटी-मोटी परेशानियों और बाधाओं को दूर करने के लिए लगाई जाती है और अर्जी असाधारण व्याधि और कष्टों को दूर करने के लिए लगाई जाती है। यूं समझिए कि यह बालाजी के मंदिर में किसी मन्नत या मनौती करने का एक वैधानिक तरीका है। बालाजी में रिवाज है कि वहां पहुंचते ही सबसे पहले एक दरखास्त इस बात की लगाई जाती है कि हम आपके दरबार में हाजिर हुए हैं। उसके बाद अगली तमाम दरख्वास्त अनेक छोटी-मोटी परेशानियों और मन की मुराद पूरी करने के लिए लगाई जाती हैं। लौटने से पहले एक दरख्वास्त इस बात की लगाई जाती है कि आप हमारी सभी दरख्वास्त या अर्जी स्वीकार करें और हम यहां से अपने घर बिना बाधा के सकुशल पहुंचे। वैसे विशेष परिस्थिति में अलग तरह का प्रसाद चढ़ाया जाता है। इसके लिए यहां के महंतजी से परामर्श लेना पड़ता है।

एक बात और, लोग यहां कोतवाल कप्तान और प्रेतराज सरकार को चढ़ाए प्रसाद को स्वयं नहीं लेते हैं वरन मंदिर के पिछवाड़े के हरिजन बाड़े में जानवरों को डाल देते हैं। हरिजन बाड़े से सटी पहाड़ी पर सैकड़ों ईंटों और पत्थरों के बने घरौंदे यानी छोटे-छोटे घर बने हैं। ये उन लोगों ने बनवाए हैं जिन पर अपने ही पूर्वजों की कोई भूत-प्रेत बाधा थी। जब वे उनसे मुक्त हो गए तो उन्हें बालाजी की शरण में ही स्थान मिल गया।

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